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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ११, ६०. सम्वत्थोवा तसकाइया ॥ ६०॥ कुदो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागपमाणत्तादो । बादरतेउकाइया असंखेजगुणा ॥ ६१ ॥ कुदो ? तसकाइएहि बादरतेउकाइएसु आवहिदेसु असंखेज्जलोगुवलंभादो। बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ ६२ ॥ एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा। गुणगारद्धछेदणसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एदं कुदो वगम्मदे ? गुरूवदेसादो । बादरणिगोदजीवा णिगोदपदिट्ठिदा असंखेजगुणा ॥ ६३ ॥ गुणगारपमाणमसंखेज्जा लोगा । तस्सद्धछेदणयसलागाओ पलिदोबमस्स असंखेज्जदिभागो। त्रसकायिक जीव सबमें स्तोक हैं ॥ ६ ॥ क्योंकि, वे जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । त्रसकायिकोंसे बादर तेजस्कायिक जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ६१ ॥ क्योंकि, प्रसकायिक जीवों द्वारा बादर तेजस्कायिक जीवोंके अपवर्तित करनेपर असंख्यात लोक उपलब्ध होते हैं। बादर तेजस्कायिकोंसे बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ६२॥ यहां गुणकार असंख्यात लोक है। गुणकारकी अर्द्धच्छेदशलाकायें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। शंका - यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान- यह गुरुके उपदेशसे जाना जाता है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंसे बादर निगोदजीव निगोदप्रतिष्ठित असंख्यातगुणे हैं ॥ ६३ ॥ गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है। उसकी अर्द्धच्छेदशलाकायें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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