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________________ २,१०, ८३.] भागाभागाणुगमे सण्णिमागणा [५१ सुगमं । अणंता भागा॥ ८० ॥) कुदो ? मिच्छाइट्ठीहि फलगुणिदसव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे एगरूवस्स अणंत. भागसहिदएगरूवोवलंभादो। सण्णियाणुवादेण सण्णी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो?॥८१॥ सुगमं । अणंतभागो॥ ८२ ॥ कुदो ? एदेहि फलगुणिदसयजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूवोवलंभादो । असण्णी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ८३ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ।। ८० ॥) क्योंकि, मिथ्यादृष्टियोंका फलगुणित सर्व जीवराशिमें भाग देने पर एक रूपके अनन्त भागसे सहित एक रूप उपलब्ध होता है। विशेषार्थ-यहां जो सर्व जीवराशिको फलसे गुणित करके मिथ्यादृष्टि राशिसे भाजित करनेको कहा गया है उससे टीकाकारका अभिप्राय उक्त प्रक्रियाको त्रैराशिक रीतिसे व्यक्त करनेका रहा जान पड़ता है। यदि मिथ्यादृष्टि राशि एक शलाका प्रमाण है तो सर्व जीवराशि कितने शलाका प्रमाण होगी? इस त्रैराशिकके अनुसार सर्व जीव राशिमें फल राशि रूप एकका गुणा और प्रमाण राशि रूप मिथ्यादृष्टि राशिसे भाग देनेपर उक्त भजनफल प्राप्त होगा। संज्ञिमार्गणानुसार संज्ञी जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं १ ॥ ८१ ॥ यह सूत्र सुगम है। संज्ञी जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ८२ ॥ क्योंकि, इनका फलगुणित सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप उपलभ होते हैं। ___ असंज्ञी जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ८३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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