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________________ १२] छखंडागमे खुदाबंध अलेस्सिया अबंधा ॥ ३२ ॥ सिद्धा अबंधा ति एत्थ पृधणिद्देसो किण्ण कदो ! ण, अलेस्सिएस बंधाबंधोभयभंगाभावेण संदेहाणुष्पत्तदो । सेसं सुगमं । [ २, १,३२. भवियाणुवादेण अभवसिद्धिया बंधा, भवसिद्धिया बंधा वि अथ अबंधा व अत्थि ॥ ३३ ॥ व भवसिद्धिया व अभवसिद्धिया अबंधा ॥ ३४ ॥ मेदं सुगमं । सम्मत्ताणुवादेण मिच्छादिट्टी बंधा, सासणसम्मादिट्टी बंधा, सम्मामिच्छादिट्टी बंधा ॥ ३५ ॥ कुदो ? सयलासव संजुत्तत्तादो । सम्मादिट्टी बंधा वि अस्थि, अबंधा वि अत्थि ॥ ३६ ॥ क्यारहित जीव अबन्धक हैं ॥ ३२ ॥ शंका- 'सिद्ध अबन्धक हैं ' ऐसा पृथक् निर्देश क्यों नहीं किया ? समाधान- नहीं किया, क्योंकि लेश्यारहित जीवोंमें बन्धक और अबन्धक ऐसे दो विकल्प न होनेसे कोई सन्देह उत्पन्न नहीं होता । अर्थात् ' अलेश्य अबधक हैं' इतना कहनेमात्र से ही स्पष्ट हो जाता है कि लेश्यारहित अयोगी जिन भी अबन्धक हैं और सिद्ध भी अबन्धक हैं । Jain Education International शेष सूत्रार्थ सुगम है । भव्यमार्गणानुसार अभव्यसिद्धिक जीव बन्धक हैं, भव्यसिद्धिक जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ॥ ३३ ॥ न भव्यसिद्धिक न अभव्यसिद्धिक ऐसे सिद्ध जीव अबन्धक हैं || ३४ ॥ यह सब सूत्रार्थ सुगम है । सम्यक्त्वमार्गणानुसार मिध्यादृष्टि बन्धक हैं, सासादन सम्यग्दृष्टि बन्धक हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं ।। ३५ ।। क्योंकि, उक्त जीव समस्त कर्मास्रवोंसे संयुक्त होते हैं। सम्यष्टि बन्धक भी हैं, अबन्धक भी हैं ॥ ३६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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