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२, १, ३१.] बंधगसतपरूवणाए लेस्सामग्गणा
(२१ णेव संजदा णेव असंजदा णेव संजदासजदा अबंधा ॥२७॥
विसएसु दुविहासंजमसरूवेण पवुत्तीए अभावा असंजदा ण होति सिद्धा । संजदा वि ण होंति, पवुत्तिपुरस्सरं तण्णिरोहाभावा । तदो णोभयसंजोगो वि । सेसं सुगमं ।
__ दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओधिदसणी बंधा ॥२८॥
केवलदसणी बंधा वि अत्थि, अबंधा वि अत्थि ॥ २९ ॥ सिद्धा अबंधा ॥ ३०॥ सबमेदं सुगमं ।
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिया णीललेस्सिया काउलेस्सिया तेउलेस्सिया पम्मलेस्सिया सुक्कलेस्सिया बंधा । ३१ ।।
सुगममेदं ।
न संयत न असंयत न संयतासंयत, ऐसे सिद्ध जीव अबंधक हैं ॥२७॥
विषयों में दो प्रकारके असंयम अर्थात् इन्द्रियासंयम और प्राणिवध रूपसे प्रवृत्ति न होनेके कारण सिद्ध असंयत नहीं हैं । और सिद्ध संयत भी नहीं हैं, क्योंकि, प्रवृत्तिपूर्वक उनमें विषयनिरोधका अभाव है। तदनुसार संयम और असंयम इन दोनोंके संयोगसे उत्पन्न संयमासंयमका भी सिद्धोंके अभाव है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है। दर्शनमार्गणानुसार चक्षुदर्शनी अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी बन्धक हैं ॥२८॥ केवलदर्शनी बन्धक भी हैं, अबन्धक भी हैं ॥२९॥ सिद्ध अबन्धक हैं ॥३०॥ . ये सब सूत्र सुगम हैं।
लेश्यामार्गणानुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और शुक्ललेश्यावाले बन्धक हैं ॥३१॥
यह सूत्र सुगम है।
१ प्रतिषु ' अबंधा' इति पाठः ।
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