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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, १, २२. एदस्स सुत्तारंभस्स कारणं पुर्व व परूवेदव्यं । ___णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणी आभिणिबोहियणाणी सुदणाणी ओधिणाणी मणपज्जवणाणी बंधा ॥२२॥
सुगममेदं । केवलणाणी बंधा वि अत्थि, अबंधा वि अत्थि ॥ २३ ॥ सिद्धा अबंधा ॥ २४ ॥
एत्थ अबंधा वेत्ति एवकारो किण्ण कदो ? ( ण,) सुत्तारंभादो चेव तदुवलद्धीदो। सेसं सुगमं ।
संजमाणुवादेण असंजदा बंधा, संजदासजदा बंधा ॥ २५॥ संजदा बंधा वि अत्थि, अबंधा वि अत्थि ॥ २६ ॥ एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि ।
इस सूत्रके पृथक् रचे जानेका कारण पूर्वमें कहे अनुसार प्ररूपित करना चाहिये।
ज्ञानमार्गणानुसार मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनियोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी बन्धक हैं ॥२२॥
यह सूत्र सुगम है। केवलज्ञानी बन्धक भी हैं, अबन्धक भी हैं ॥ २३ ॥ सिद्ध अवन्धक हैं ।। २४ ॥
शंका-यहां ' अबन्धक ही हैं ' ऐसा अन्य विकल्पका निषेधात्मक एव' पदका प्रयोग क्यों नहीं किया ?
समाधान नहीं किया, क्योंकि, सूत्रकी पृथक् रचनामात्रसे ही वही अर्थ जान लिया जाता है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है। संयममार्गणानुसार असंयत बंधक हैं और संयतासंयत बंधक हैं ॥२५॥ संयत बंधक भी हैं, अबंधक भी हैं ॥२६॥ ये दोनों सूत्र सुगम हैं।
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