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२, ९, ५७.] गाणाजीवेण अंतराणुगमे सम्मत्तमरगणा
सुगम। णिरंतरं ॥ ५३॥ सुगमं ।
सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्टि-खइयसम्माइटि-वेदगसम्माइट्टि-मिच्छाइट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ५४ ॥
सुगमं । णत्थि अंतरं ॥ ५५॥ सुगमं । णिरंतरं ॥ ५६ ॥ सुगमं । उवसमसम्माइट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ५७ ॥ सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है। भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक जीव निरन्तर हैं ॥ ५३ ॥ यह सूत्र सुगम है।
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुसार सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ।। ५४ ।।
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता है ॥ ५५ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे जीवराशियां निरन्तर हैं ॥ ५६ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपशमसभ्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ५७ ।। यह सूत्र सुगम है।
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