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णाणाजीवेण अंतराणुगमो णाणाजीवेहि अंतराणुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइयाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ १ ॥
णाणाजीवणिदेसो एगजीवपडिसेहफलो । अंतरणिदेसो सेसाणिोगद्दारपडिसेहफलो । णेरइयणिदेसो तत्थट्टियपुढविकाइयादिपडिसेहफलो । केवचिरं-णिहेसो समयावलिय-खण-लव-मुहुत्तादिफलो । अबसेस सुगमं ।
णस्थि अंतरं ॥२॥
कुदो ? सव्यद्धासु अवट्ठाणादो । णाणाजीवेहि कालणिरूवणाए चेव एदेसिमंतरमत्थि एदेसिं च णत्थि त्ति णयदे । तदो अंतरपरूवणा ण कादव्वे ति । एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं जहा- कालाणिओगद्दारे जेमिमंतरमस्थि त्ति अवगदं तेमिमंतराणं पमाणपरूषणहमिदमणिओगद्दारमागदं । जदि एवं तो सांतररासीणमेव परूवणा कीरउ वंतर
नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरानुगमसे गतिमार्गणाके अनुसार नरकगतिमें नारकी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥१॥
__नाना जीवों की अपेक्षा ' यह निर्देश एक जीव की अपेक्षाके प्रतिषेधके लिये है। 'अन्तर' निर्देशका फल शेष अनुयोगद्वारोंका प्रतिषेध है। 'नारकी जीवों' का निर्देश वहांपर स्थित पृथिवीकायिकादि जीवोंका प्रतिषेधक है। 'कितने काल' यह निर्देश समय, आवली, क्षण, लव व मुहूर्तादि रूप 'कालविशेषोंका सूचक है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
नारकी जीवोंका अन्तर नहीं होता ।। २ ॥ क्योंकि, उनका सर्व कालोंमें अवस्थान है।
शंका-नाना जीवोंकी अपेक्षा की गई कालप्ररूपणासे ही ' इनका अन्तर है और इनका नहीं है' यह बात जानी जाती है। अत एव फिर अन्तरप्ररूपणा नहीं करना चाहिये?
समाधान-यहां परिहार कहते हैं। वह इस प्रकार है- कालानुयोगद्वारमें जिन जीवोंका ‘अन्तर है ' ऐसा ज्ञात हुआ है, उनके अन्तरोंके प्रमाणप्ररूपणार्थ यह अनुयोगद्वार आता है।
शंका-यदि ऐसा है तो अन्तरविशिष्ट सान्तरराशियोंकी ही प्ररूपणा करना
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