SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे खुद्दाबंधी [२, ८, ४७. जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥४७॥ कुदो ? दिट्ठमग्गाणं सम्मामिच्छन्नुवसमसम्मत्ताणि पडिवज्जिय सबजहण्णकालं तेसु अच्छिय गुणंतरगदाणं सुदु जहणतोमुहुत्तमेत्तकालुवलंभादो । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४८ ॥ एत्थ एदम्हि काले आणिज्जमाणे अप्पिदगुणढाणकालमत्तम्हि एगपवेसणकालसलागं करिय एरिसासु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तसलागासुप्पण्णासु तदो णियमा अंतरं होदि । एत्थ सव्धकालसलागाहि गुणकाले गुणिदे उक्कस्सकालो होदि। सासणसम्माइट्ठी केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ४९॥ सुगमं । जहण्णेण एगसमयं ॥ ५० ॥ कुदो ? उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमयावसेसाए सासणं गंतूण एगसमयमच्छिय उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥४७॥ क्योंकि, दृष्टमार्गी जीवोंके सम्यग्मिथ्यात्व और उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त कर तथा सर्व जघन्य काल तक इन गुणस्थानोंमें रहकर अन्य गुणस्थानको प्राप्त होनेपर अतिशय जघन्य अन्तर्मुहूर्तमात्र काल पाया जाता है। उपर्युक्त जीव उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र काल तक रहते हैं ॥४८॥ यहां इस काल के निकालते समय विवक्षित गुणस्थानके कालप्रमाण एक प्रवेशनकालको शलाका करके पुनः ऐसी पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र शलाकाओंके उत्पन्न होनेपर तत्पश्चात् नियमसे अन्तर होता है। यहां सब कालशलाकाओंसे गुणस्थानकालको गुणित करनेपर उत्कृष्ट काल होता है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥४९॥ यह सूत्र सुगम है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीव जघन्यसे एक समय रहते हैं ॥ ५० ॥ क्योंकि, उपशमसम्यक्त्वकालमें एक समय शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy