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________________ २, ८, १९. गाणाजीवेण कालाणुगमे जोगमागणा [ ४६९ वोच्छेदप्पसंगादो। ण सगद्धाथोवतं संताणवोच्छेदस्स कारणं, वेउब्धियमिस्सद्धादो संखेजगुणहीणद्धवलक्खियमणजोगिसंताणस्स वि सांतरत्तप्पसंगादो । किंतु जस्स गुणट्टाणस्स मग्गणट्ठाणस्स वा एगजीवावट्ठाणकालादो पवेमंतरकालो बहुगो होदि तस्सण्णयवोच्छेदो । जस्स पुण कयात्रि ण बहुओ तस्स ण संताणरस वोच्छेदो त्ति घेत्तव्यं । मणजोगि-वचिजोगीणं पुण एगममयो सुट्ट पविग्लो त्ति एत्थ जहण्णकालत्तणेण ण गहिदो। वेउब्वियमिस्सकायजोगी केवचिरं कालादो होति ? ॥ १८ ॥ सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९ ॥ कुदो ? ओरालियकायजोगट्ठिदतिरिक्ख-मणुस्साणं वे विग्गहे कादूण देवेसुप्पजिय सव्वजहणेण कालेण पज्जत्तीओ समाणिय अंतोमुहुत्तमेत्तजहण्णकालुवलंभादो । संख्यात मनुष्य पर्याप्त जीवोंकी सन्तानके भी व्युच्छेदका प्रसंग होगा। अपने कालकी अल्पता भी सन्तानव्युच्छेदका कारण नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर वैक्रियिकमिश्रकालसे संख्यातगुणे हीन काल से उपलक्षित मनोयोगिसन्तानके भी सान्तरताका प्रसंग आवेगा । किन्तु जिस गुणस्थान अथवा मार्गणास्थानके एक जीवके अवस्थानकालसे प्रवेशान्तरकाल बहुत होता है उसकी सन्तानका व्युच्छेद होता है । जिसका वह काल कदापि बहुत नहीं है उसकी सन्तानका नहीं होता, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । परन्तु मनोयोगी व वचनयोगियोंका एक समय बहुत ही कम पाया जाता है, इस कारण यहां जघन्य कालरूपसे यह नहीं ग्रहण किया गया। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १८ ॥ यह सूत्र सुगम है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है ॥ १९ ॥ क्योंकि, औदारिककाययोगमें स्थित तिर्यंच और मनुष्योंका दो विग्रह करके देवों में उत्पन्न होकर और सर्व जघन्य कालसे पर्याप्तियोंको पूर्ण कर बहुत ही कम पाया जाता अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य काल पाया जाता है। १ अप्रतौ ' -हीणव्वुचलक्खिय ', आ-काप्रयोः । -हीणब्वुवलक्खिय' इति पाठः। २ प्रतिषु ' एगसमया सुट्ठ पविरदो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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