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________________ ४६८ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ८, १६. सुगमं । जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी कायजोगी ओरालियकायजोगी ओरालियमिस्सकायजोगी वेउब्वियकायजोगी कम्मइयकायजोगी केवचिरं कालादो होति ? ॥ १६ ॥ सुगमं । सव्वद्धा॥ १७ ॥ मणजोगि-वचिजोगीणमद्धा जहण्णण एगसमओ, उक्कसेण अंतोमुहुत्तं । मणुसअपजताणं पुण जहण्णओ उकस्सओ वि अंतोमुहुत्तपत्तो चेव । जदि एवंविहमणुसअपज्जत्ताणं संताणो सांतरो होज्ज तो मण-वचिजोगीणं संताणो सांतरो किण्ण हवे, विसेसाभावादो । ण दवपमाणकओ विसेसो, देवाणं संखेज्जभागमेत्तदव्युवलक्खियवेउब्धियमिस्सकायजोगिसंताणस्स वि सम्बद्धप्पसंगादो । एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं जहा- ण दव्यबहुत्तं संताणाविच्छेदस्स कारणं, संखेज्जमणुसपज्जत्ताणं संताणस्स वि यह सूत्र सुगम है। योगमार्गणाके अनुसार पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी और कार्मणकाययोगी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १६ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सर्व काल रहते हैं ॥ १७ ॥ शंका-मनोयोगी और वचनयोगियोंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । परन्तु मनुष्य अपर्याप्तोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है। यदि इस प्रकारके मनुष्य अपर्याप्तोंकी सन्तान सान्तर है, तो मनोयोगी मौर वचनयोगियोंकी सन्तान सान्तर क्यों नहीं होगी, क्योंकि, उनमें कोई विशेषता नहीं है । यदि द्रव्यप्रमाणकृत विशेषता मानी जाय तो वह भी नहीं बनती, क्योंकि, देवोंके संख्यातवें भागमात्र द्रव्यसे उपलक्षित वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंकी सन्तानके भी सर्व काल रहनेका प्रसंग होगा? समाधान-यहां उपर्युक्त शंकाका परिहार कहते हैं। वह इस प्रकार हैद्रव्यकी अधिकता सन्तानके अधिदका कारण नहीं है, क्योंकि, ऐसा होनेपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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