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________________ २, ८, १५.1 णाणाजीवेण कालाणुगमे कायमग्गणा [४६७ कायाणुवादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणप्फदिकाइया णिगोदजीवा वादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तापज्जत्ता तसकाइयपज्जत्ता अपज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? ॥ १४ ॥ एत्थ वि णत्थि वत्तव्यं, सुगमत्तादो । सव्वद्धा ॥ १५॥ कायमार्गणाके अनुसार पृथिवीकायिक, पृथिवीकायिक पर्याप्त, पृथिवीकायिक अपर्याप्त बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, मूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त; अप्कायिक, अप्कायिक पर्याप्त, अप्कायिक अपर्याप्त; बादर अप्कायिक, वादर अप्कायिक पर्याप्त, बादर अप्कायिक अपर्याप्त; सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त सूक्ष्म अकायिक अपर्याप्त; तेजस्कायिक, तेजस्कायिक पर्याप्त, तेजस्कायिक अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक, बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त; सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त, सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त; वायुकायिक, वायुकायिक पर्याप्त, वायुकायिक अपर्याप्त; बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक अपयाप्त सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त; बनस्पतिकायिक, वनस्पतिकायिक पर्याप्त, वनस्पतिकायिक अपर्याप्त; बादर वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, चादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त निगोद जीव, निगोद जीव पर्याप्त, निगोद जीव अपर्याप्त बादर निगोद जीव, बादर निगोद जीव पर्याप्त, बादर निगोद जीव अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद जीव, सूक्ष्म निगोद जीव पर्याप्त, सूक्ष्म निगोद जीव अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त; त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और प्रसकायिक अपर्याप्त जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १४ ॥ यहां भी कुछ कहने योग्य नहीं है, क्योंकि, यह सूत्र सुगम है । उपर्युक्त जीव सर्व काल रहते हैं ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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