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________________ २, ७, २६२.] फोसणाणुगमे सम्मत्तमग्गणा [ ४५७ भागा लम्भंति, एदेसि समासो एक्कारहचोदसभागा सासणोववादफोसणखेत्तं होदि ति। उवरि सत्त चोदसभागा किण्ण लद्धा ? ण, सासणाणमेइंदिएसु उववादाभावादो । मारणंतियमेइदिएसु गदसासणा तत्थ किण्ण उप्पज्जति ? ण, मिच्छत्तमागंतूण सासणगुणेण उप्पत्तिविरोहादो। सम्मामिच्छाइट्ठीहि सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? ॥२६०॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥२६१ ॥ सुगमं, वट्टमाणप्पणादो। अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ २६२ ॥ तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके छह बटे चौदह भाग प्राप्त होते हैं, इन दोनोंके जोड़रूप ग्यारह बटे चौदह भागप्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका उपपादकी अपेक्षा स्पर्शनक्षेत्र होता है। शंका-ऊपर सात बटे चौदह भाग क्यों नहीं प्राप्त होते ? समाधान-नहीं, क्योंकि सासादनसम्यग्दृष्टियोंकी एकेन्द्रियों में उत्पत्ति नहीं है। शंका-एकेन्द्रियों में मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त हुए सासादनसम्यग्दृष्टि जीव उनमें उत्पन्न क्यों नहीं होते ? समाधान-नहीं, क्योंकि, आयुके नष्ट होनेपर उक्त जीव मिथ्यात्व गुणस्थानमें आ जाते हैं, अतः मिथ्यात्वमें आकर सासादनगुणस्थानके साथ उत्पत्तिका विरोध है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥२६०॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥२६१ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है । अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २६२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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