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________________ ४५८ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ७, २६३. सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अट्ठाइजादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोदसभागा वा फोसिदा । सेसं सुगमं ।। समुग्धाद-उववादं णस्थि ॥ २६३ ॥ कुदो ? सम्मामिच्छत्तगुणेण मरणाभावादो । वेयण-कसाय वेउब्वियस मुग्धादाणमेत्थ परूवणं किण्ण कदं ? ण, तेसिं पहाणत्ताभावादो । मिच्छाइट्टी असंजदभंगो ॥ २६४ ॥ सुगमभेदं । सण्णियाणुवादेण सण्णी सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ २६५ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २६६ ॥ स्वस्थान पदसे तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। तथा विहारवत्स्वस्थानसे आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । शेष सूत्रार्थ सुगम है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके समुद्घात और उपपाद पद नहीं होते हैं ।। ६६३ ॥ क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके साथ मरणका अभाव है। शंका-वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातोंकी यहां प्ररूपणा क्यों नहीं की गई है ? समाधान-नहीं, क्योंकि उनकी प्रधानता नहीं है। मिथ्यादृष्टि जीवोंके स्पर्शनका निरूपण असंयत जीवोंके समान है ॥ २६४ ॥ यह सूत्र सुगम है। संज्ञिमार्गणानुसार संज्ञी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २६५ ॥ यह सूत्र सुगम है। संज्ञी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ २६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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