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________________ ४५६] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ७, २५६. सुगम, वट्टमाणप्पणादो। अट्ठ-बारहचोदसभागा वा देसूणा ॥ २५६ ॥ वैयण-कसाय-वेउब्धियसमुग्घादेहि अट्टचोदसभागा फोसिदा । मारणंतियसमु. ग्घादेहि बारहचोद्दस भागा फोसिदा,मेरुमूलादो हेट्ठोवरि पंच-सत्तरज्जुआयामेण मारणंतियस्सुवलंभादो। उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २५७ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो॥२५८ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। एक्कारहचोदसभागा देसूणा ॥ २५९ ॥ कुदो ? छट्टिपुढविणेरइयाणं सासणगुणेण पंचिंदियतिरिक्खेसु उप्पज्जमाणाणं पंचचोद्दसभागा उववादेण लभंति, देवेहितो पंचिंदियतिरिक्खेसुप्पज्जमाणाणं छचोद्दस यह सूत्र सगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ और बारह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २५६ ॥ वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातोंसे आठ वटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं। मारणान्तिकसमुद्घातसे बारह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, मेरुमूलसे नीचे पांच और ऊपर सात राजु आयामसे मारणान्तिकसमुद्घात पाया जाता है। उक्त सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पष्ट है ? ॥ २५७॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवों द्वारा उपपाद पदसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥२५८॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है।। अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २५९ ॥ क्योंकि, सासादनगुणस्थानके साथ पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले छठी पृथिवीके नारकियोंके पांच बटे चौदह भाग उपपादसे प्राप्त होते हैं, तथा देवोंसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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