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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, १, ९. पंचिंदिया बंधा वि अस्थि, अबंधा वि अस्थि ॥९॥
कुदो ? मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलित्ति बंधा चेव, तत्थ बंधकारणमिच्छत्तादीणमुवलंभादो । अजोगिकेवली अबंधा चेव, मिच्छत्तादिवंधकारणाणं सव्वेसिमभावा । तेण पंचिंदिया बंधा वि अत्थि, अबंधा वि अत्थि ति भणिदं । सजोगिअजोगिकेवलीणं केवलणाण-दसणेहि दिवासेसपमेयाणं करणवावारविरहियाणं कधं पंचिंदियत्तं ? ण एस दोसो, पंचिंदियणामकम्मोदयं पडुच्च तेसिं तव्ववएसादो।
अणिंदिया अबंधा ॥१०॥ कुदो ? सिद्धेसु णिरंजणेसु सयलबंधाभावादो, णिरामएसु बंधकारणाभावा ।
कायाणुवादेण पुढवीकाइया बंधा आउकाइया बंधा तेउकाइया बंधा वाउकाइया बंधा वण'फदिकाइया बंधा ॥ ११ ॥
पंचेन्द्रिय जीव बन्धक भी हैं, अबन्धक भी हैं ॥ ९॥
क्योंकि, मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली तकके जीव तो बन्धक ही हैं, क्योंकि, उनमें बन्धके कारणभूत मिथ्यात्वादि पाये जाते हैं । किन्तु अयोगिकेवली
: ही हैं, क्योंकि, उनमें मिथ्यात्व आदि सभी बन्धके कारणोंका अभाव है। इसीलिये 'पंचेन्द्रिय जीव बन्धक भी हैं, अबन्धक भी हैं' ऐसा कहा गया है।
शंका-जिन्होंने केवलज्ञान और केवलदर्शनसे समस्त प्रमेय अर्थात् शेय पदाढेको देख लिया है और जो करण अर्थात् इन्द्रियोंके व्यापारसे रहित हैं, ऐसे सयोगी और अयोगी केवलियोंको पंचेन्द्रिय कैसे कह सकते हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, उनमें पंचेन्द्रिय नामकर्मका उदय विद्यमान है, अतः उसकी अपेक्षासे उन्हें पंचेन्द्रिय कहा गया है।
अनिन्द्रिय जीव अवन्धक हैं ।। १०॥
क्योंकि, निरंजन सिद्धोंमें समस्त बन्धका अभाव है, चूंकि निरामय अर्थात् निर्विकार जीवोंमें बन्धका कोई कारण नहीं रहता।
कायमार्गणानुसार पृथिवीकायिक जीव बन्धक हैं, अप्कायिक बन्धक हैं, तेजस्कायिक बन्धक हैं, वायुकायिक बन्धक हैं और वनस्पतिकायिक बन्धक हैं ॥११॥
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.१ प्रतिषु 'बंधा' इति पाठः।
२ करतौ -णामकम्म' इति पाठः ।
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