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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो agaleसभागा वा सूणा ॥ २२९ ॥ सत्थाणेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदि भागो, अड्डा इज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोदसभागा देणा फोसिदा, सम्माइट्ठीणं मेरुमूलादो हेङा दोरज्जुमेतद्भाणगमणस्स दंसणादो । समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २२२ ॥ ४४६ ] सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २२३ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणं कायव्वं, वट्टमाणवेयण-कसाय- वे उब्विय-तेजाहार-केवलिसमुग्धाद-मारणंतियखेत्तप्पणादो । अचोद सभागा वा देसूणा ॥ २२४ ॥ वेयण-कसाय-उत्रिय मारणंतियपदेहि अट्ठचोदसभागा देगा फोसिदा । [ २, ७, २२१. अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ २२१ ॥ स्वस्थान पद से सम्यग्दृष्टि जीवोंने तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । यह वा शब्द से सूचित अर्थ है । विहारवत्स्वस्थान पद से कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, मेरुमूलसे नीचे दो राजुमात्र मार्ग में सम्यग्दप्रियोंका गमन देखा जाता है । सम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २२२ ॥ यह सूत्र सुगम है । सम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ? ॥ २२३ ॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि वर्तमानकालसम्बन्धी वेदना, कपाय, वैक्रियिक, तैजस, आहारक, केवलिसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदों की अपेक्षा क्षेत्रकी विवक्षा है । हैं अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट ॥ २२४ ॥ वेदना, कषाय, वैकियिक और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि जीवों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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