________________
२, ७, २२०.] फोसणाणुगमे सम्मत्तमग्गणा
। ४४५ सुगमं । सबलोगो ॥ २१८ ॥
सत्थाण-वेयण-कसाय-मारणतिय-उववादेहि अदीद वट्टमाणे सब्बलोगो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणेण वट्टमाणे खेत्तं; अदीदेण अट्टचोद्दमभागा फोसिदा । वेउवियपदेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणो फोसिदो । भवसिद्धिएसु सेसपदाणमोघभंगो । कधमेदं समुबलद्धं ? देसामासियत्तादो।
सम्मत्ताणुवादेश सम्मादिट्ठी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २१९ ॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २२० ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो।
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवों द्वारा उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ २१८ ॥
स्वस्थान, वेदना, कषाय मारणान्तिक और उपपाद पदोंसे अतीत व वर्तमान कालमें भव्यसिद्धिक एवं अभव्यसिद्धिक जीवों द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा वर्तमान कालमें क्षेत्रके समान प्ररूपणा है; अतीत कालमें आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । भव्यसिद्धिक जीवोंमें शेष पदोंकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण ओधके समान है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-इस सूत्रके देशामर्शक होनेसे उपर्युक्त अर्थ उपलब्ध होता है।
सम्यक्त्वमार्गणानुसार सम्यग्दृष्टी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २१९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
सम्यग्दृष्टि जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ २२०॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि वर्तमान कालकी विवक्षा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org