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४४१] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
( २, ७, २१६. एदं' पदरगदकेवलिमस्सिदण भणिदं, वादवलए मोत्तण तत्थ सबलोगंगदजीवपदेसाणमुवलंभादो। दंडगदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एवं कवाडगदेहि वि । णवरि तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो तत्तो संखेज्जगुणो वा फोसिदो त्ति वत्तव्यं । एसो वासदेण यउत्तसमुच्चओ । पुव्वसुत्तट्ठियवासदेण वि अउत्तसमुच्चओ पुबसुत्ते चेव कदों, सुक्कलेस्सियदेवेहि कयमारणंतिएहि चदुण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो त्ति एदस्स सूचयत्तादो।
सबलोगो वा ॥ २१६ ॥ एदं लोगपूरणगदकेवलिं पडुच्च समुद्दिष्टुं । एत्थ वासद्दो उत्तसमुच्चयत्थो ।
भवियाणुवादेण भवसिद्धिय अभवसिद्धिय सत्थाण-समुग्धादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। २१७ ॥
यह प्रतरसमुद्घातगत केवलीका आश्रय कर कहा गया है, क्योंकि, प्रतरसमुद्घातमें वातवलयोंको छोड़कर सर्व लोकमें व्याप्त जीव प्रदेश पाये जाते हैं। दण्डसमुद्घातगत जीवों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। इसी प्रकार कपाटसमुद्घातगत जीवों द्वारा भी स्पृष्ट है। विशेष इतना है कि तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग अथवा उससे संख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, ऐसा कहना बाहिये। यह सूत्र में नहीं कहे हुर अर्थका वा शब्दके द्वारा समुच्चय किया गया है। पूर्व सूत्र में स्थित वा शब्दके द्वारा भी अनुक्त अर्थका समुच्चय पूर्व सूत्र में ही किया गया है, क्योंकि, वह वा शब्द 'मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त शुक्ललेश्यावाले देवोंके द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है ' इस अर्थका सूचक है।
अथवा, सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ २१६ ॥
यह लोकपूरणसमुद्घातगत केवलीकी अपेक्षा कहा गया है। यहां वा शब्द पूर्वोक्त अर्थके समुच्चयके लिये है।
भव्यमार्गणानुसार भव्यसिद्धिक और अभव्यासद्धिक जीवों द्वारा स्वस्थान, समुद्घात एवं उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २१७॥ .
१ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः। २ अ-काप्रत्योः ' अउत्तसमुच्चओ चेव', आप्रतौ ' अउत्तसमुच्चओ पुध्वमुत्तं चेव ' इति पाठ: ।
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