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२, ७, २१५.]
फोसणाणुगमे लेस्सामग्गणां एदस्सत्थो- सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासद्देण समुच्चिदत्थो । विहारवदिसत्थाण-उववादेहि छचोद्दसभागा फोसिदा, तिरियलोगादो आरणच्छुदकप्पे समुप्पज्जमाणाणं छरज्जुअभंतरे विहरंताणं च एत्तियमेत्तफोसणुवलंभादो।
समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २१२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २१३ ॥ एत्थ खेत्तपरूवणा कायया । छचोदसभागा वा देसूणा ॥ २१४ ॥
आरणच्चुददेवेसु कयमारणंतियतिरिक्ख-मणुस्साणमुबलभादो । वेदण-कसायवेउब्धियसमुग्धादाणं विहारवदिसत्थाणभंगो ।
असंखेज्जा वा भागा ॥ २१५ ॥
इसका अर्थ- स्वस्थान पदसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । यह वा शब्द द्वारा समुच्चय रूपसे सूचित अर्थ है। विहारवत्स्वस्थान और उपपाद पदोंसे छह बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है. क्योंकि. तिर्यग्लोकसे आरण-अच्यत कल्पमें उत्पन्न होनेवाले और छह राजुके भीतर विहार करनेवाले उक्त जीवोंके इतना मात्र स्पर्शन पाया जाता है।
उक्त जीवों द्वारा समुद्धात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २१२ ॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवों द्वारा समुद्धात पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ? ॥२१३॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये । अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥२१॥
क्योंकि, आरण-अध्युत कल्पवासी देवोंमें मारणान्तिकसमुद्घातको करनेवाले तिर्यंच और मनुष्य पाये जाते हैं । वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातोंकी अपेक्षा स्पर्शनका मिरूपण बिहारयत्स्वस्थानके समान है।
अथवा, असंख्यात बहुभाग स्पृष्ट हैं ॥ २१५ ।।
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