________________
४४२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ७, २०७. लोगस्स असंखेज्जदिभागो॥ २०७॥ एदं पि सुगम, वट्टमाणप्पणादो । पंचचोदसभागा वा देसूणा ॥ २०८ ॥
कुदो ? मेरुमूलादो उवरि पंचरज्जुमेत्तद्धाणं गंतूण सहस्सारकप्पस्स अवट्ठाणादो । एत्थ वासद्दो वुत्तसमुच्चयट्ठो ।
सुक्कलेस्सिया सत्थाण-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥२०९ ॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २१० ॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्या, वट्टमाणप्पणादो । छचोदसभागा वा देसूणा ॥ २११ ॥
उक्त जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २०७॥
यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि वर्तमान कालकी विवक्षा है।
अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कुछ कम पांच बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥२०८॥
.. क्योंकि, मेरुमूलसे पांच राजुमात्र मार्ग जाकर सहस्रारकल्पका अवस्थान है । सूत्रमें वा शब्द पूर्वोक्त अर्थके समुच्चयके लिये है।
शुक्ललेश्यावाले जीवोंने स्वस्थान और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥२०९ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंने उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।।२१०॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है ।
अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है ॥ २११॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org