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________________ [१४१ २, ७, २०६.] फोसणाणुगमे लेस्सामग्गणा पम्मलेस्सिया सत्थाण-समुग्धादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥२०३॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो । २०४ ॥ सुगम, वट्टमाणणिरोहादो। अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ २०५॥ सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो फोसिदो। एसो वासद्दसूइदत्थो । विहार-वेयण-कसायवेउब्धिय-मारणंतियपरिणएहि अट्ठचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । कुदो ? पम्मलेस्सियदेवाणमेइंदिएसु मारणंतियाभावादो। उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २०६ ॥ सुगमं । पद्मलेश्यावाले जीवोंने स्वस्थान और समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २०३॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंने उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।।२०४॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षारूप निरोध है । अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ २०५ ॥ स्वस्थान पदकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे परिणत उन्हीं पद्मलेश्यावाले जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, पद्मलेश्यावाले देवोंके एकेन्द्रिय जीवों में मारणान्तिकसमुद्घातका अभाव है । उक्त जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २०६ ॥ यह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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