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________________ १५.] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ७, १७७. असंजदाणं णqसयभंगो ॥ १७७ ॥ सुगममेदं । दंसणाणुवादेण चक्खुदसणी सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥१७८ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ १७९ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्वा, वट्टमाणपरूवणादो । अट्ठचोद्दसभागा वा देसूणा ॥ १८० ॥ सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोदस असंयत जीवोंके स्पर्शनका निरूपण नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ १७७ ॥ यह सूत्र सुगम है। दर्शनमार्गणाके अनुसार चक्षुदर्शनी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ॥ १७८ ॥ यह सूत्र सुगम है। चक्षुदर्शनी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १७१॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी प्रधानता है। अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थान पदोंसे चक्षुदर्शनी जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १८० ॥ चक्षुदर्शनी जीवोंने स्वस्थानसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीवों द्वारा (कुछ कम) आठ बटे १ अ-काप्रत्यो संखेज्जदिमागो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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