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२, ७, १५७. ]
फोसणागमे विभंगणाणणं फोसणं
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देसामा सिय सुत्तमेदं, तेणेदेण सूइदत्थो बुच्चदे - सत्थाणेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एस सूत्थो । विहारवदिसत्थाणेहि अट्ठचोइसभागा देखणा फोसिदा ।
समुग्धादेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १५४ ॥
सुमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १५५ ॥
एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्वा, वट्टमाणेण अहियारादो ।
अचाभागा देसूणा फोसिदा ॥
१५६ ॥
एदस्स अत्थो - वेयण- कसाय - वेउब्वियपदेहि अट्ठचोदस भागा देखणा फोसिदा, विहरताणं सव्वत्थ वेयण-कसाय - वेउब्वियाणं संभवादो ।
सव्वलोगो वा ॥ १५७ ॥
यह सूत्र देशामर्शक है, इसलिये इससे सूचित अर्थ कहते हैं-- स्वस्थानपदों से विभंगशानी जीवोंने तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । यह सूचित अर्थ है । विहार. वत्स्वस्थान पदकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है।
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समुद्घातकी अपेक्षाविभंगज्ञानी जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १५४ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
समुद्घातकी अपेक्षाविभंगज्ञानी जीवोंने लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १५५ ॥
यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि वर्तमान कालका अधिकार है । अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।। १५६ ।।
इस सूत्रका अर्थ- वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है, क्योंकि, विहार करनेवाले विभंगशानियोंके सर्वत्र वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात सम्भव हैं ।
अथवा सर्व लोक स्पर्श किया है ।। १५७ ।।
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