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________________ ४२८ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो एदं मारणंतियपदमस्सिदूण वृत्तं । कुदो ? विभंगणाणितिरिक्ख मणुस्साणं मारणंतियस तीदे काले सव्वलोगुवलंभादो | देव - णेरइयाणं मारणंतियमस्सिदृण तेरह - ' चोदसभागा होंति त्ति जाणावणङ्कं वासद्दणिद्देसो को | उववादं णत्थि ।। १५८ ॥ दो ? विस्ससादो | आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणी सत्थाण- समुग्धादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ १५९ ॥ सुमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १६० ॥ एत्थ खेत्तवण्णणं कायव्वं, वट्टमाणावलंबणादो । अचोसभागा देणा ॥ १६१ ॥ ॥ १६० ॥ यह मारणान्तिकपदका आश्रयकर कहा गया है, क्योंकि, विभंगज्ञानी तिर्यच और मनुष्योंके मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा अतीत कालमें सर्व लोक पाया जाता है । देव व नारकियोंके मारणान्तिकसमुद्घातका आश्रयकर तेरह बटे चौदह भाग होते हैं. इसके ज्ञापनार्थ सूत्रमें वा शब्दका निर्देश किया है । विभंगज्ञानी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ १५८ ॥ क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंने स्वस्थान व समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ।। १५९ ।। यह सूत्र सुगम है । उपर्युक्त जीवोंने उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है [ २, ७, Jain Education International १५८. यहां क्षेत्रप्ररूपणा कहना चाहिये, क्योंकि वर्तमान कालकी अपेक्षा है । अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।। १६१ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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