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________________ ४२६ ] सुमं । सव्वलोगो ॥ १५० ॥ छक्खंडागमे खुदाबंधो सत्थाण- वेयण-कसाय-मारणंतिय-उववादेहि अदीद- वट्टमाणेण सव्वलोगो फोसिदो । दो ! विस्ससादो । विहारवदिसत्थाणपदेण अदीद-वट्टमाणेण जहाकमेण अट्ठचोद सभागा तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो । वेउव्त्रियपदस्स वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण अडचोद सभागो फोसिदो । विभंगणाणी सत्याहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १५१ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १५२ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्वा, वहमाण पणादो | अचो सभागा देणा ॥ १५३ ॥ यह सूत्र सुगम है । मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी जीवोंने उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १५० ॥ ॥ १५२ ॥ [ २, ७, १५०. स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे अतीत व वर्तमान कालकी अपेक्षा मतिअज्ञानी जीवोंने सर्व लोक स्पर्श किया है, क्योंकि, ऐसा स्वभावसे है । विहारवत्स्वस्थानपद से अतीत व वर्तमान कालकी अपेक्षा यथाक्रमसे आठ वटे चौदह भाग व तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । वैक्रिथिक पदकी अपेक्षा वर्तमान कालकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । अतीत कालकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । विभंगज्ञानी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया हैं ? ॥ १५१ ॥ यह सूत्र सुगम है । विभंगज्ञानी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है हैं ? ।। १५३ ॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है । अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बढे चौदह भाग स्पृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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