SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २, ७, १३४.] फोसणाणुगमे इत्थि-पुरिसवेदाणं फौसणं [२१ लोगस्स संखेज्जदिभागो साहेयन्यो । एसो सूइदत्थो। विहारवदिसत्थाणेहि पुण अट्ठचोदसभागा देसूणा फोसिदा, देवीहि सह देवाणमट्टचोदसभागेसु तीदे काले संचारुवलंभादो । समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १३२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १३३॥ एत्थ खेत्तवण्णणं कायच्वं, वट्टमाणप्पणादो । अट्ठचोदसभागा देसूणा सबलोगो वा ॥ १३४ ॥ वेयण-कसाय-वेउव्यियपदपरिणदेहि अट्टचोदसभागा देसूणा फोसिदा। कुदो ! देवीहि सह अट्टचोद्दसभागे भमंताणं देवाणं सव्वत्थ वेयण-कसाय-विउबणाणमुवलंभादो। तेजाहारसमुग्घादा ओघभंगो । णवरि इथिवेदे तदुभयं णत्थि । मारणंतियसमुग्घादेण संख्यातवां भाग सिद्ध करना चाहिये । यह सूचित अर्थ है। किन्तु विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है, क्योंकि, देवियोंके साथ देवोंका आठ बटे चौदह भागोंमें अतीत कालकी अपेक्षा गमन पाया जाता है। स्त्रीवेदी व पुरुषवेदी जीव समुद्घातोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १३२ ॥ यह सूत्र सुगम है। समुद्घातकी अपेक्षा उक्त जीव लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥१३३ ॥ यहां क्षेत्रका वर्णन करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी प्रधानता है। अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका अथवा सर्व लोकका स्पर्श किया है ।। १३४ ॥ वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोसे परिणत स्त्रीवेदी व पुरुषवेदी जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, देवियों के साथ आठ बटे चौदह भागमें भ्रमण करनेवाले देवोंके सर्वत्र वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घात पाये जाते हैं । तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण ओघके समान है। विशेष इतना है कि स्त्रीवेदमें ये दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy