________________
४२०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
( २, ७, १२८. सुगमं । सबलोगो ॥ १२८ ॥ एवं पि सुगमं ।
वेदाणुवादेण इत्थिवेद-पुरिसवेदा सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १२९ ॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १३० ॥ एत्थ खेत्तपरूवणा कायया, वट्टमाणप्पणादो । अट्ठचोदसभागा देसूणा ॥ १३१ ॥
एदं देसामासियसुत्तं । तेणेदेण सूइदत्थस्स ताव परूवणं कस्सामो। तं जहासत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एत्थ वाणवेंतर-जोदिसियाणं विमाणेहि रुद्धखेत्तं घेत्तूण तिरिय
यह सूत्र सुगम है। कार्मणकाययोगियों द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ १२८ ।। यह सूत्र भी सुगम है।
वेदमार्गणानुसार स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं । १३० ॥
यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी प्रधानता है।
अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है ।। १३१ ।।
यह देशामर्शक सूत्र है, इस कारण इससे सूचित अर्थकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- स्वस्थानकी अपेक्षा उक्त जीवोंने तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। यहां वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके विमानोंसे रुद्ध क्षेत्रको ग्रहणकर तिर्यग्लोकका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org