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________________ ५२२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ७, १३५. सम्बलोगो, तिरिक्ख-मणुस्सपुरिसस्थिवेदाणं सव्वलोगे मारणंतियसंभवादो। वासदो किमg ? समुच्चयट्ठो। देव-देवणिं मारणंतियं घेप्पमाणे णवचोदसभागा होति ति फोसणविसेसजाणावणटुं वा वासद्दो परूविदो । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १३५॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १३६ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्वा, वट्टमाणप्पणादो । सबलोगो वा ॥ १३७॥ कुदो ? सव्वदिसादो आगंतूण इत्थि-पुरिसवेदेसु उप्पज्जमाणाणमुवलंभादो । देवदेवीओ च अस्सिदण भण्णमाणे तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो छचोदसभागा तिरियलोगस्स संखेज्जदिमागो फोसिदो त्ति जाणावणटुं वासद्दग्गहणं कयं । पद नहीं होते । मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, तिर्यच मौर मनुष्य पुरुष-स्लीवेदियोंके सर्व लोकमें मारणान्तिकसमुद्घातकी सम्भावना है। शंका-सूत्रमें वा शब्दका प्रयोग किस लिये किया गया है ? समाधान-वा शन्दका प्रयोग समुच्चयके लिये किया गया है। अथवा देव-देवियोंके मारणान्तिकसमुद्घातको ग्रहण करनेपर नौ बटे चौदह भाग होते हैं, इस स्पर्शनविशेषके शापनार्थ वा शब्दका प्रयोग किया गया है। उपपादकी अपेक्षा स्त्रीवेदी व पुरुषवेदी जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥१३५ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥१३६॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, उपपादकी अपेक्षा अतीत कालमें उक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है।॥ १३७॥ क्योंकि, सर्व दिशाओंसे आकर स्त्री व पुरुष वेदियोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव पाये जाते हैं । देव-देवियोंका आश्रय कर स्पर्शनके कहनेपर तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, छह बटे चौदह भाग और तिर्यग्लोकका संख्यातयां भाग स्पृष्ट है, इसके बापनार्थ सूत्रमे वा शब्दका ग्रहण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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