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________________ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो . [ २, ७, ७९. समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ७९ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणं कायव्यं, वट्टमाणप्पणादो । सव्वलोगो वा ॥ ८१॥ एत्थ ताव वासदत्थो उच्चदे । तं जहा- वेयण-कसाय-वेउब्धियपदेहि तिणं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगादो संखेज्जगुणो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । मारणंतिय-उववादेहि सबलोगो फोसिदो, एदेसिं सव्वत्थ गमणागमणं पडि विरोहाभावादो। __ बादरवाउक्काइया तस्सेव अपज्जता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ८२ ॥ ......................................... समुद्घात व उपपाद पदोंकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥७९॥ यह सूत्र सुगम है। समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ८० ॥ यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥८१ ॥ यहां पहले वा शब्दसे सूचित अर्थ कहते है । वह इस प्रकार है- वेदना. समुद्घात, कषायसमुद्घात, और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुना क्षेत्र स्पृष्ट है।मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, इन जीवोंके सर्वत्र गमनागमनके प्रति कोई विरोध नहीं है। ___ चादर वायुकायिक और उसके ही अपर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ।। ८२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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