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२, ७, ७७.] फोलणाणुगमे पुढविकाइयादीणं फोसणं
[१०५ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ७५॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे- तिण्णं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगादो संखेज्जगुणो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो वट्टमाणे फोसिदो। सेसं खेत्तभंगो ।
सबलोगो वा ॥ ७६ ॥
एत्थ वासदत्थो वुच्चदे- वेयण-कसायपदपरिणदेहि वेउब्बियपदपरिणदेहि य तिहं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगादो संखेज्जगुणो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एत्थ वेउब्धियपदस्स पुव्वं व तिविहं वक्खाणं कायव्वं । मारणंतिय-उववादेहि सव्वलोगो फोसिदो, वट्टमाणातीदकालदसणादो ।
बादरपुढवि-बादरआउ-बादरतेउ बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥७७॥
सुगमं ।
समुद्घात व उपापद पदोंसे उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- वर्तमान कालमें उक्त पदों की अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। शेष कथन क्षेत्रप्ररूपणाके समान है।
अथवा उक्त पदोंकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ७६ ॥
यहां वा शब्दसे सूचित अर्थ कहते हैं- वेदनासमुद्घात और कषायसमुदघात पदोसे परिणत तथा वैक्रियिक पदसे परिणत उक्त जीवोंके द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। यहां वैक्रियिक पदकी अपेक्षा पूर्वके समान तीन प्रकार व्याख्यान करना चाहिये। मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, इन पदों में वर्तमान व अतीत काल देखे जाते हैं ।
बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक और पादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ७७॥
यह सूत्र सुगम है।
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