SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ७, ७२. तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो, शर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कुदो ? पंचरज्जुबाहल्लं तिरियपदरमावूरिय तीदे काले अवट्ठाणादो । बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ७२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेजदिभागो ॥ ७३ ॥ एदस्स वट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो । तीदे काले एदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगादो संखेज्जगुणो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कुदो ? सव्वकालमट्ठपुढवीओ भवणविमाणाणि च अस्सिदूण अवट्ठाणादो । समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खत्तं फोसिदं ? ॥ ७४ ॥ सुगमं । संख्यातवां भाग और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, उक्त जीवोंका अतीत कालकी अपेक्षा पांच राजु तिर्यप्रतरको पूर्ण कर अवस्थान है। बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और उनमें प्रत्येकके अपर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ७२ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥७३॥ इस सूत्रकी वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीत कालकी अपेक्षा इन्हीं जीवों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, सर्व कालमें आठ पृथिवियों और भवनविमानोंका आश्रय करके उक्त जीवोंका अवस्थान है। समुद्घात और उपपाद पदोंसे उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥७४॥ यह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy