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२, ७, ७१.] फोसणाणुगमे पुढविकाइयादीणं फोसणं
[१०१ एत्थ वदृमाणपरूवणाए खेत्तभंगो। अदीदेण सत्थाण-वेयण-कसाय-मारणंतियउववादेहि सबलोगो फोसिदो। तेउकाइएहि वेउब्धियपदेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कम्मभूमिपडि भागसयंभूरमणदीवद्धे चेव किर तेउकाइया होति, ण अण्णत्थेत्ति के वि आइरिया भणति । तेसिमहिप्पारण तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो। अण्ण के वि आइरिया सव्वेसु दीव-समुद्देसु तेउकाइयवादरपज्जत्ता संभवंति त्ति भणंति । कुदो ! सयंभूरमणदीव-समुद्दप्पण्णाणं बादरतेउपज्जत्ताणं वाएण हिरिज्जमाणाणं कीडणसीलदेवपरतंताणं वा सव्वदीव-समुद्देसु सविउव्यणाणं गमणसंभवादो । केइमारिया तिरियलोगादो संखेज्जगुणो फोसिदो त्ति भणंति । कुदो ? सयपुढवीसु बादरतेउपज्जत्ताणं संभवादो। तिसु वि उवदेसेसु को एत्थ गेज्झो ? तइज्जो घेत्तव्यो, जुत्तीए अणुग्गहिदत्तादो । ण च सुत्तं तिहमेक्कस्स वि मुक्ककंठं होऊण परूवयमस्थि । पहिल्लओ उपएसो वक्खाणेहि वक्खाणाइरियेहि य संमदो त्ति एत्थ सो चेव णिद्दिट्ठो । वाउक्काइएहि वेउवियपदेण
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रके समान है। अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थान, घेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदोंसे उक्त जीव सर्व लोक स्पर्श करते हैं। तेजस्कायिक जीवोंके द्वारा वैक्रियिकपदकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवा भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । कर्मभूमिप्रतिभागरूप अर्ध स्वयम्भुरमण द्वीपमें ही तेजस्कायिक जीव होते हैं, अन्यत्र नही, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं। उनके अभिप्रायसे उक्त स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग होता है। अन्य कितने ही आचार्य 'सर्व द्वीप-समुद्रों में तेजस्कायिक बादर पर्याप्त जीव संभव हैं' ऐसा कहते हैं, क्योंकि, स्वयम्भुरमण द्वीप व समुद्र में उत्पन्न बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवोंका वायुसे लेजाये जानेके कारण अथवा क्रीड़नशील देवोंके परतंत्र होनेसे सर्व द्वीप-समुद्रोंमें विक्रिया युक्त होकर गमन सम्भव है। कितने आचार्योंका कहना है कि उक्त जीवोंके द्वारा वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है,क्योंकि, सर्व पृथिवियों में बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवोंकी सम्भावना है।
शंका-उपर्युक्त तीनों उपदेशोंमें कौनसा उपदेश यहां ग्राह्य है ?
समाधान-तीसरा उपदेश यहां ग्रहण करने योग्य है, क्योंकि, वह युक्तिसे अनुगृहीत है। दूसरी बात यह है कि सूत्र इन तीन उपदेशोंमेंसे एकका भी मुक्तकण्ठ होकर प्ररूपक नहीं है । पहिला उपदेश व्याख्यानों और व्याख्यानाचार्योंसे सम्मत है, इसलिये यहां उसीका निर्देश किया गया है । वायुकायिक जीवोंके द्वारा वैक्रियिकपदसे तीन लोकोंका
१ अप्रतौ । -समुद्देसु वि उप्पण्णाणं' इति पाठः ।
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