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छक्खंडागमे खुदाबंधो
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ६८ ॥
एत्थ खेrपरूवणं कायव्यं ।
सव्वलोगो वा ॥ ६९ ॥
वेयण-कसायपदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदि भागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । मारणंतिय-उववादेहि सच्चलोगो फोसिदो ।
कायावादेण पुढविकाइय वाउकाइय सुहुमतेउकाइय सुहुमवाउकाइय तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाण - समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ७० ॥
सुमं ।
सव्वलोगो ॥ ७१ ॥
[ २, ७, ६८.
पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ६८ ॥
यहां वर्तमान कालकी अपेक्षा क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये ।
अथवा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है || ६९ ||
पंचेन्द्रिय अपर्याप्तों द्वारा वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंसे तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ।
कायमार्गणानुसार पृथिवीकायिक, वायुकायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और उन्हींके पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? || ७० ॥
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यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त जीव उक्त पदोंकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ ७१ ॥
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