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________________ ४०० ] छक्खंडागमे खुदाबंधो लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ६८ ॥ एत्थ खेrपरूवणं कायव्यं । सव्वलोगो वा ॥ ६९ ॥ वेयण-कसायपदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदि भागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । मारणंतिय-उववादेहि सच्चलोगो फोसिदो । कायावादेण पुढविकाइय वाउकाइय सुहुमतेउकाइय सुहुमवाउकाइय तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाण - समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ७० ॥ सुमं । सव्वलोगो ॥ ७१ ॥ [ २, ७, ६८. पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ६८ ॥ यहां वर्तमान कालकी अपेक्षा क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये । अथवा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है || ६९ || पंचेन्द्रिय अपर्याप्तों द्वारा वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंसे तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है । कायमार्गणानुसार पृथिवीकायिक, वायुकायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और उन्हींके पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? || ७० ॥ Jain Education International यह सूत्र सुगम है । उपर्युक्त जीव उक्त पदोंकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ ७१ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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