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२, ७, ६७.] फोसणाणुगमे पंचिंदियाणं फोसणं
[ ३९९ कायव्या । सव्वलोगट्ठिदसुहुमेइंदिएहितो पंचिंदिएसु आगंतूण उप्पण्णपढमसमयजीवाणं सव्वलोगे वावित्तदसणादो उववादेण सव्वलोगो फोसिदो। सत्थाण-समुग्धाद-उववादेसु एयवियप्पेसु कधं सव्वत्थ बहुवयणणिदेसो ? ण, तेसु सगदाणेयवियप्पसंभवादो।
पंचिंदियअपज्जत्ता सत्थाणेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ?॥६५॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥६६॥
एदस्स अत्थं भण्णमाणे वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एदस्स कारणं पुव्वमेव परविदं।
समुग्धादेहि उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ६७ ॥ सुगमं ।
कारण यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये। सर्व लोकमें स्थित सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंमेंसे पंचेन्द्रिय जीवों में आकर उत्पन्न होनेके प्रथमसमयवर्ती जीवोंके सर्व लोकमें व्याप्त देखे जानेसे उपपादकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ।
शंका-स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंके एक विकल्परूप होने पर सर्वत्र बहुवचनका निर्देश कैसे किया ?
समाधान नहीं, क्योंकि, उनमें स्वगत अनेक विकल्पोंकी सम्भावना है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव स्वस्थानकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥६५॥ यह सूत्र सुगम है।
पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव स्वस्थानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श करते हैं ॥ ६६ ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते समय वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्र. प्ररूपणाके समान करना चाहिये। अतीत कालकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । इसका कारण पूर्व में ही कहा जा चुका है।
पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा समुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ६७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
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