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फोसणाणुगमे देवाणं फोसणं
[ ३८५
भवणवासिय-वाणवेंतर-जोइसियदेवा सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं
२, ७, ३२. ]
फोसिदं ? ॥ ३१ ॥ सुमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो अद्भुट्टा वा अट्ठचोद्दस भागा वा देसृणा ॥ ३२ ॥
लोगस्स असंखेजदिभागो ति णिद्देसो वट्टमाणं पडुच्च बुत्तो । तेण एत्थ खेत्त परूपण कायव्वा । तीदकालं पडुच्च परूवणं कस्सामो— सत्थाणेण वाणवें तर- जो दिसिय देवेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो फोसिदो | कुदो ? वट्टमाणकाले व तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमोट्ठहिय अवट्ठाणादो | भवणवासियदेवेहि सत्थाणेण चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणेण आहुट्ठचोदसभागा । कुदो ? भवणवासिय वाणवेंतरजोदिसियदेवाणं मेरुमूलादो अधो दोण्णि, उवरि जाव सोहम्मविमाणसिहरधयदंडो त्ति दिवरज्जुमे त्तसगणिमित्तविहारस्सुवलंभादो | परपच्चएण पुण अचोदस भागा
भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ३१ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त देव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग, साढ़े तीन राजु अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ३२ ॥
'लोकका असंख्यातवां भाग' यह निर्देश वर्तमान कालकी अपेक्षा कहा गया है। इस कारण यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये । अतीत कालकी अपेक्षा प्ररूपणा करते हैं- स्वस्थानपद से वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, वर्तमान काल के समान अतीत कालमें भी तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागको व्याप्तकर उनका अवस्थान है । भवनवासी देवों द्वारा स्वस्थानकी अपेक्षा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणाक्षेत्र स्पृष्ट है । विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा चौदह भागों में से साढ़े तीन भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंका स्वनिमित्तक विहार मेरुमूलसे नीचे दो राजु और ऊपर सौधर्म विमानके शिखरपर स्थित ध्वजादण्ड तक डेढ़ राजुमात्र पाया जाता है । परन्तु परनिमित्तक विहारकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा कुछ
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