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________________ ३८४ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, ७, २९. एत्थ खेत्ताणिओगद्दार परूवणा जा जोग्गा सा सव्वा परूवेदव्वा | संपहि तीदकाखेपणा करदे - वेयण- कसाय-वेउच्चिएहि अट्ठचोदसभागा फोसिदा । कुदो ! विहरमाणाणं देवाणं सगविहारखेत्तस्संतरे वेयण-कसाय विउच्चणाणमुवलंभादो । मारणंतिएण वचो सभागा फोसिदा, मेरुमूलादो उवरि सत्त हेट्ठा दोरज्जु मे त्तखेत्तन्भंतरे ती काले सव्वत्थ कयमारणंतियदेवाणमुवलंभांदो । उवादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २९ ॥ सुमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोहसभागा वा देसूणा ||३०|| लोगस्स असंखेज्जदिभागो चि वट्टमाणखेत्तं पडुच्च णिदेसो कदो | तेणेत्थ खेतपरूवणा सच्चा कायन्वा । तीदकालखेत्त परूवणं कस्सामो- छचोदस्सभागा देसूणा । कुदो ? आरणच्चदकप्पो त्ति तिरिक्ख मणुस असं जदसम्मादिद्वीणं संजदासंजदाणं च उववादुवलंभादो । इसलिये यहां जो क्षेत्रानुयोगद्वारप्ररूपणा योग्य हो उस सबकी प्ररूपणा करना चाहिये । अब अतीत कालसम्बन्धी क्षेत्रप्ररूपणा की जाती है - वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, विहार करनेवाले देवोंके अपने विद्वारक्षेत्र के भीतर वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पद पाये जाते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा नौ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, मेरुमूलसे ऊपर सात और नीचे दो राजुमात्र क्षेत्रके भीतर सर्वत्र अतीत काल में मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त देव पाये जाते हैं । उपपादकी अपेक्षा देवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २९ ॥ यह सूत्र सुगम है । उपपादकी अपेक्षा देवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ३० ॥ 'लोकका असंख्यातवां भाग ' यह निर्देश वर्तमान क्षेत्रकी अपेक्षासे किया गया है । इस कारण यहां सब क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये । अतीत कालकी अपेक्षा क्षेत्रकी प्ररूपणा करते हैं— उपपादकी अपेक्षा अतीत कालमें कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं; क्योंकि, आरण- अच्युत कल्प तक तिर्यच व मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टियों और संयतासंयतोंका उपपाद पायां जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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