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________________ ३७४ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ७, ११. लोगस्स असंखेज्जदिभागो एग-बे-तिण्णि-चत्तारि-पंच-छ-चोदसभागा वा देसूणा ॥ ११ ॥ - वेयण-कसाय-उब्धियपदपरिणदेहि तीदे काले लोगस्स असंखेजदिभागो फोसिदो। वट्टमाणकाले पुण छपुढविणेरइएहि वेयण-कसाय-वेउब्धिय-मारणंतिय-उववादपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । तीदे काले मारणंतिय-उववादेहि बिदियादिछपुढविणेरइएहि जहाकमेण देसूणएग-बे-तिण्णि-चत्तारिपंचचोद्दसभागा। कुदो ? तिरिक्खाणं णेरइयाणं तीदे काले सबदिसाहि आगमणगमणसंभवादो। तिरिक्खगदीए तिरिक्खा सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १२ ॥ सुगममेदं । सब्बलोगो ॥ १३॥ उक्त नारकियों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम चौदह . भागोंमेंसे क्रमशः एक, दो, तीन, चार, पांच और छह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ११ ॥ - वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे परिणत उक्त नारकियों द्वारा अतीत कालकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है। किन्तु वर्तमान कालकी अपेक्षा छह पृथिवियोंके नारकियों द्वारा वेदनाससुद्धात, कषायसमुद्धात, वैक्रियिकसमुद्धात,मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदोंसे परिणत होकर चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। अतीत कालकी अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे द्वितीयादि छह पृथिवियोंके नारकियों द्वारा यथाक्रमसे कुछ कम चौदह भागों में से एक, दो, तीन, चार, पांच और छह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, तिर्यंच व नारकियोंका अतीत कालमें सब दिशाओंसे आगमन और गमन सम्भव है। तियंचगतिमें तियंच जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२ ॥ यह सूत्र सुगम है। तिर्यंच जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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