________________
२, ७, १०. फोसणाणुगमे णेरड्याणं फोसणं
[३७१ अण्णेण होदव्यमण्णहा एदस्स उवमालोगत्ताणुववत्तीदो । सेसं सुगुमं ।
विदियाए जाव सत्तमाए पुढवीए णेरइया सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ८॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥९॥
एदस्सत्था-सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसस्थाणपदपरिणदेहि अदीद-वट्टमाणकालेसु णेरइएहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। कुदो? छण्णं पुढवीणं लोगणालीए रुद्धखेत्तस्स असंखेज्जदिभागे चेव णेरइयावासाणमुवलंभादो ।
समुग्घाद-उववादेहि य केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १०॥ सुगमं ।
व पांच द्रव्योंका आधारभूत उपमेय लोक अन्य होना चाहिये, क्योंकि, इसके विना इसके उपमालोकत्व बन नहीं सकता (देखो पुस्तक ४, पृ. १०-२२)। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
द्वितीयसे लेकर सप्तम पृथिवी तकके नारकियों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ८ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त नारकियों द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है
इस सूत्रका अर्थ- स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान पदोंसे परिणत नारकियोंके द्वारा अतीत व वर्तमान कालोंमें चार लोकोका असंख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, छह पृथिवियोंके लोकनालीसे रुद्ध असंख्यातवें भागमें ही नारकावास पाये जाते हैं।
उक्त नारकियों द्वारा समुद्घात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है !
यह सूत्र सुगम है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.
www.jainelibrary.org