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३७२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ७, ७. मारणंतिय-उववादखेत्ताणि तिरियलोगादो सादिरेयाणि होति । ण चेदं घडदे, एदम्हि उवदेसे घेप्पमाणे लोगम्मि तिण्णिसदतेदालमेत्तघणरज्जूणमणुप्पत्तीदो। ण च एदाओ घणरज्जू असिद्धाओ, रज्जू सत्तगुणिदा जगसेडी, सा वग्गिदा जगपदरं, सेडीए गुणिदजगपदरं घणलोगो होदि त्ति सयलाइरियसम्मदपरियम्मसिद्धत्तादो। ण च सव्वदो हेडिम-मज्झिम-उवरिमभागेहि वेत्तासण-झल्लरी-मुइंगसमाणे लोगे घेप्पमाणे सेढी'-पदरघणलोगा वग्गसमुट्ठिदा होंति, तधा संभवाभावादो। ण च एदेसिमवग्गसमुट्ठिदत्तम
भुवगंतुं जुत्तं, कदजुम्मेहि पंचिंदियतिरिक्ख-पज्जत्त-जोणिणि-जोदिसिय-वेंतरदेवअवहारकालेहि सुत्तसिद्धेहि अकदजुम्मजगपदरे भागे हिदे सच्छेदस्स जीवरासिस्स आगमणप्पसंगादो । ण च एवं, जीवाणं छेदाभावादो, दवाणिओगद्दारवक्खाणम्मि वुत्तहेट्ठिमउवरिमवियप्पाणमभावप्पसंगादो च । तिण्णिसदतेदालघणरज्जुपमाणो उबमालोओ, एदम्हादो अण्णो पंचदव्याहारो लोगो त्ति के वि आइरिया भणंति । तं पि ण घडदे, उवमेएण विणा उवमाए अण्णत्थ घणगुल-पलिदोवम-सागरोवमादिसु अणुवलंभादो । तम्हा- एत्थ वि उवमेएण लोगेण पमाणदो उवमालोगाणुसारिणा पंचदव्वाहारेण ग्लोकको बतलाते हैं उनके मतानुसार मारणान्तिक व उपपाद क्षेत्र तिर्यग्लोकसे साधिक होते हैं। (देखो पुस्तक ४, पृ. १८३ और १८६ के विशेषार्थ) । परन्तु यह घटित नहीं होता, क्योंकि, इस उपदेशके ग्रहण करनेपर लोकमें तीनसौ तेतालीस मात्र घनराज ओंकी उत्पत्ति नहीं बनती। तथा ये घनराज असिद्ध भी नहीं हैं, क्योंकि, 'राजुको सातसे गुणित करनेपर जगश्रेणी, उस जगप्रेणीका वर्ग जगप्रतर और जगश्रेणीसे गुणित जगप्रतरप्रमाण घनलोक होता है' इस प्रकार समस्त आचार्यों द्वारा माने गये परिकर्मसूत्रसे वे सिद्ध है । दूसरी बात यह है कि सब ओरसे अधस्तन, मध्यम व उपरिम भागोंसे क्रमशः चेत्रासन, झालर व मृदंगके समान लोकके ग्रहण करने पर जगणी, जगप्रतर और घनलोक वर्गसे उत्पन्न नहीं होंगे; क्योंकि, उक्त मान्यतामें वैसा संभव ही नहीं है। और इनकी विना वर्गके उत्पत्ति स्वीकार करना उचित भी नहीं है, क्योंकि पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचन्द्रिय पर्याप्त तिर्यच, योनिमती तिर्यंच, ज्योतिषी और वानव्यन्तर देवोंके सूत्रसिद्ध कृतयुग्मराशिरूप अवहारकालोंका अकृतयुग्म जगप्रतरमें भाग देनेपर सछेद जीवराशिकी प्राप्तिका प्रसंग होगा। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि जीवोंके छेदोंका अभाव है । तथा द्रव्यानुयोगद्वारके व्याख्यानमें कहे गये अधस्तन व उपरिम विकल्पोंके अभावका भी प्रसंग होगा। (देखो पुस्तक ३, पृ. २१९, २४९ व पुस्तक ७, पृ. २५३ )।
तीनसौ तेतालीस घनराजुप्रमाण उपमालोक है, इससे पांच द्रव्योंका आधारभूत लोक अन्य है, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । परन्तु वह भी घटित नहीं होता, क्योंकि, उपमेयके विना उपमाका अन्यत्र घनांगुल, पल्योपम व सागरोपमादिकोंमें अनुपलम्भ है । अत एव यहां भी प्रमाणसे उपमालोकका अनुसरण करनेवाला
१ प्रतिषु — सीदी- ' इति पाठः ।
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