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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ११५ ॥ सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण- वेयण-कसाय- वेउच्त्रियपदेहि सम्मामिच्छादिट्ठी चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे ति एसो सुत्तस्सत्थो । मिच्छाइट्ठी असंजदभंगो ॥ ११६ ॥ ३६४ ] सुगममेदं । सणियाणुवादेण सण्णी सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखे ? ॥ ११७ ॥ [ २, ६, ११५ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ११८ ॥ देण सूचिदत्थो बुच्चदे । तं जहा - सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण- वेयण कसाय - वे उव्वियपदेहि सण्णी तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एवं मारणंतिय उववादेसु वि वत्तन्वं । णवरि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव स्वस्थानसे लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ।। ११५ ॥ स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, यह इस सूत्र का अर्थ है । मिथ्यादृष्टि जीवों का क्षेत्र असंयत जीवोंके समान है ।। ११६ ॥ यह सूत्र सुगम है | संज्ञिमार्गणानुसार संज्ञी जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदसे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ।। ११७ ॥ यह सूत्र सुगम है । संज्ञी जीव उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ॥ ११८ ॥ इस सूत्र के द्वारा सूचित अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है - स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे संक्षी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग में, और अढ़ाई द्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । इसी प्रकार मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदों के विषय में भी कहना चाहिये । विशेष इतना है कि तिर्यग्लोकले असंख्यातगुणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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