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________________ २, ६, ११४.] खेत्ताणुगमे सम्मत्तमग्गणा सम्मामिच्छाइट्ठी सत्थाणेण केवडिखेत्ते ? ॥ ११४ ॥ सम्मामिच्छादिहिस्स वेयण-कसाय-घेउब्धियपदेसु संतेसु वि समुग्धादस्स अस्थित्तमणिय सत्थाणपदस्स एक्कस्स चेव परूवणादो णज्जदि जधा वेयण-कसाय-वेउव्वियपदाणि समुग्घादपदम्हि ण गहिदाणि त्ति । जदि एदम्हि गंथे ण गहिदाणि तो वि किमटुं एत्थ परूवणा कीरदे ? जेसिमेरिसो अहिप्पाओ ण ते तेहि परूवेति । जेसिं पुण समुग्घादपदस्संतो वेदणादिपदाणि अस्थि ते तेहि परूवणं करेंति । जदि एवं तो सम्मामिच्छादिट्ठिम्हि समुग्घादपदेण होदव्वं ? ण एस दोसो, जत्थ मारणंतियमस्थि तत्थेव तेसिमत्थित्तस्स अब्भुवगमादो । किमट्ठमेवंविहअब्भुवगमो कीरदे ? ण, मारणंतिएण विणा वेदणादिखेत्ताणं पहाणत्ताभावपदुप्पायणटुं तहाभुवगमकरणे दोसाभावादो । सेसं सुगमं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव स्वस्थानकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ११४ ॥ सम्याग्मिथ्याष्टिके वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्धात पदोंके होनेपर भी समुद्घातके अस्तित्वको न कहकर केवल एक स्वस्थानपदके ही निरूपणसे जाना जाता है कि वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात . पद समुद्घातपदमें गृहीत नहीं है। शंका- यदि इस ग्रन्थमें वे गृहीत नहीं है तो किस लिये यहां उनकी प्ररूपणा की जाती है ? समाधान--इस प्रकार जिनका अभिप्राय है वे उनकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण नहीं करते हैं। किन्तु जिनके अभिप्रायसे वेदनासमुद्घातादि पद समुद्घात पदके भीतर है वे उनकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं। __ शंका- यदि ऐसा है तो सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें समुद्घात पद होना चाहिये ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, जहां मारणान्तिकसमुद्घात पद है वहां ही उनका अस्तित्व स्वीकार किया गया है । शंका-ऐसा किस लिये स्वीकार किया गया है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, मारणान्तिकसमुद्घातके विना वेदनादिसमुद्धात क्षेत्रोंकी प्रधानताके अभावको बतलानेके लिये वैसा स्वीकार करने में कोई दोष नहीं है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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