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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, ६, १११. समुग्घादेण लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा ॥ १११ ॥ एदस्स अत्थो बुच्चदे - वेयण-कसाय - वेउच्चिय-मारणंतिएहि सम्मादिट्ठी खइयसम्मादिट्ठी चदुहं लोगाणमसंखेज्जदिभागे माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे । एवं केवलिदंड खेत्तं पि । एवं तेजाहारपदाणं । णवरि माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे ति वत्तव्यं । सेसतिणि वि केवलिपदाणि सुगमाणि । 1 ३६२ ] वेद सम्माइट्टि उवसमसम्माइट्ठि-सासणसम्माहट्टी सत्थाणेण समुग्वादेण उववादेण केवडिखेते ? ॥ ११२ ॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ११३ ॥ एदस्स सुत्तस्स अत्थो जाणिय वत्तव्यो । वरि उवसमसम्माइट्ठीसु मारणंतियउववादपदट्ठिदजीवा' संखेज्जा चेत्र । सम्यग्दृष्टि व क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव समुद्घातकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें, अथवा असंख्यात बहुभागोंमें, अथवा सर्व लोक में रहते हैं ।। १११ ॥ इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - वेदनासमुद्घात, कपायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में व मानुषक्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । इसी प्रकार केवलिदण्डसमुद्घातकी अपेक्षा भी क्षेत्रका निरूपण करना चाहिये। इसी प्रकार तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा भी क्षेत्रका प्रमाण जानना चाहिये । विशेष इतना है कि उक्त दोनों समुद्घातगत जीव जीव मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये । शेष तीनों ही केवलिपद सुगम हैं । वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ ११२ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ॥ ११३॥ इस सूत्र का अर्थ जानकर कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उपशमसस्यग्दृष्टियोंमें मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंमें स्थित जीव संख्यात ही हैं । १ प्रतिषु ' उववादपदिट्ठिदजीवा ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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