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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ६, १०७.
दस्त्थों युच्चदे । तं जहा - वेयण कसाय- वे उव्त्रिय-दंड-मारणंतियपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एवं तेजाहारपदाणं पि । वरि माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे त्ति वत्तव्यं । सेस केवलिपदाणि सुगमाणि । भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया सत्थाणेण समुग्धादेण उववादे केवडिखेत्ते ? ॥ १०७ ॥
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सुगमं ।
सव्वलोगे ॥ १०८ ॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे - सत्थाणसत्थाण- वेयण-कसाय मारणंतिय उववादेहि अभवसिद्धिया सव्वलोगे । कुदो ? आणंतियादो । विहारवदिसत्थाण - वेउच्चियपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? 'सव्वत्थोवा धुवबंधगा, सादियबंधगा असंखेज्जगुणा, अणादियबंधगा असंखेज्जगुणा, अद्भुवबंधगा विसेसाहिया धुवबंध गेणूण सादिय बंधगेणेत्ति ' तसरासिमस्सिदूण बुत्तबंधप्पाबहुगसुत्तादो वदे |
/ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है- वैदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात, दण्डसमुद्घात और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । इसी प्रकार तैजससमुद्घात व आहारकसमुद्घात पदोंके भी क्षेत्रका निरूपण करना चाहिये । विशेष इतना है कि इन पदोंकी अपेक्षा उक्त जीव मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भाग में रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये । शेष केवलिसमुद्घात पद सुगम हैं ।
भव्य मार्गणाके अनुसार भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ।। १०७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
भव्यसिद्धिक व अभव्यसिद्धिक जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक में रहते हैं ॥ १०८ ॥ इसका अर्थ कहते हैं स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा अभव्यसिद्धिक जीव सर्व लोकमें रहते हैं, क्योंकि, वे अनन्त हैं । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ।
शंका- - यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान - 'ध्रुवबन्धक सबसे स्तोक हैं, सादिवन्धक असंख्यातगुणे हैं, अनादिबन्धक असंख्यातगुणे हैं, और अध्रुवबन्धक ध्रुवबन्धकोंसे रहित सादिबन्धकोंके प्रमाणसे विशेष अधिक हैं ' इस प्रकार सराशिका आश्रय कर कहे गये बन्धसम्बन्धी अल्प
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