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________________ २, ६, १०६.] खेत्ताणुगमे लेस्सामग्गणा [ ३५९ असंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिमागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? पहाणीकदतिरिक्खरासीदो। वेउव्यिय-मारणंतिय-उववादेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? सणक्कुमार-माहिंदजीवाणं पाहणियादो । सुक्कलेस्सिया सत्थाणेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ १०४ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ १०५॥ एदस्स अत्थो चुच्चदे- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-उववादेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ उववादजीवा संखेज्जा चेव । कुदो ? मणुस्सेहिंतो चेव आगमणादो । समुग्धादेण लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा ॥ १०६ ॥ पदोंसे पद्मलेश्यावाले जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें, और अढाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां तिर्यचराशि प्रधान है । वैक्रियिकसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पके जीवोंकी प्रधानता है । शुक्ललेश्यावाले जीव स्वस्थान और उपपाद पदोंसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १०४॥ यह सूत्र सुगम है। शुक्ललेश्यावाले जीव उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥१०५।। इसका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान और उपपाद पदोंसे शुक्ललेश्यावाले जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । यहां उपपादपदगत जीव संख्यात ही हैं, क्योंकि, मनुष्योमेसे ही यहां आगमन है। शुक्ललेश्यावाले जीव समुद्घातकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें, अथवा असंख्यात बहुभागोंमें अथवा सर्व लोकमें रहते हैं ॥ १०६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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