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________________ २, १, १.] बंधगसंतपरूवणाए णिदेसपरूवणं जे कम्मबंधया ते दुविहा- इरियावहबंधया सांपराइयबंधया चेदि । तत्थ जे इरियावहबंधया ते दुविहा- छदुमत्था केवलिणो चेदि । जे छदुमत्था ते दुविहा- उवसंतकसाया खीणकसाया चेदि । जे सांपराइयबंधया ते दुविहा- सुहुमसांपराइया बादरसांपराइया चेदि । जे सुहुमसांपराइया बंधया ते दुविहा- असंपराइयादिया बादरसांपराइयादिया चेदि । जे बादरसांपराइया ते तिविहा- असंपराइयादिया सुहुमसांपराइयादिया अणादि. बादरसांपराइया चेदि । तत्थ जे अणादिबादरसांपराइया ते तिविहा- उवसामया खवया अक्खवयाणुवसामया चेदि । तत्थ जे उवसामया ते दुविहा-- अपुवकरणउवसामया अणियट्टिकरणउवसामया चेदि । जे खवया ते दुविहा- अपुव्यकरणखवया अणियहिकरणखवया चेदि । तत्थ जे अक्खवयअणुवसामगा ते दुविहा- अणादिअपज्जवसिदबंधा च अणादिसपज्जवसिदबंधा चेदि । तत्थ जे भावबंधया ते दुविहा- आगम-णोआगमभावबंधयभेदेण । तत्थ जे बंधपाहुडजाणया उवजुत्ता आगमभावबंधया णाम । णोआगमभावबंधया जहा कोह-माण-माया-लोह-पेम्माई अप्पणाई करेंता । एदेसु बंधगेसु कम्मबंधएहि एत्थ अधियारो । एदेसि बंधयाणं णिद्देसे कीरमाणे चोद्दसमग्गणट्ठाणाणि आधारभूदाणि हॉति । काणि ताणि मग्गणट्ठाणाणि त्ति वुत्ते .......................................... जो कर्मों के बन्धक हैं वे दो प्रकारके हैं- ईर्यापथबन्धक और साम्परायिकबन्धक । उनमें जो ईपिथबन्धक हैं वे दो प्रकारके हैं-छमस्थ और केवली। जो छद्मस्थ हैं वे दो प्रकारके हैं- उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय । जो साम्परायिकबन्धक हैं वे दो प्रकारके हैं- सूक्ष्मसाम्परायिक और वादरसाम्परायिक। जो सूक्ष्मसाम्परायिक बन्धक हैं वे दो प्रकारके हैं- असाम्परायादिक और धादरसाम्परायादिक । जो बादरसाम्परायिक है वे तीन प्रकारके हैं- असाम्परायादिक, सूक्ष्मसाम्परायादिक और अनादिबादरसाम्परायिक । उनमें जो अनादिवादरसाम्परायिक हैं वे तीन प्रकारके हैं- उपशामक, क्षाक और अक्षपकानुपशामक । उनमें जो उपशामक हैं वे दो प्रकारके हैं- अपूर्वकरण उपशामक और अनिवृत्तिकरण उपशामक । जो क्षपक हैं वे दो प्रकारके हैं - अपूर्वकरण क्षपक और अनिवृत्तिकरण क्षपक । उनमें जो अक्षपकानुपशामक हैं वे दो प्रकारके हैं- अनादि-अपर्यवसित बन्धक और अनादिसपर्यवसित बन्धक। ___ उनमें जो भावबन्धक हैं वे आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारके हैं। उनमें बन्धप्राभृतके जानकार और उसमें उपयोग रखनेवाले आगमभावबन्धक हैं। नोआगमभावबन्धक, जैसे क्रोध, मान, माया, लोभ व प्रेमको आत्मसात करनेवाले। इन सब बन्धकों में कर्मवन्धकोंका ही यहां अधिकार है । इन्हीं बन्धकोंका निर्देश करनेपर चौदह मार्गणास्थान आधारभूत हैं। वे मार्गणास्थान कौनसे हैं? ऐसा पूछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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