SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १, १. णाम ते दुविहा आगम-णोआगमभेएण । बंधयपाहुडजाणया अणुवजुत्ता आगमदव्वबंधया णाम । कधमागमेण विप्पमुक्कस्स जीवदव्यस्स आगमववएसो ? ण एस दोसो, आगमाभावे वि आगमसंसकारसहियस्स पुव्वं लद्धागमववएसस्स जीवदधस्स आगमववएसुवलंभा। एदेणेव भट्ठसंसकारजीवदव्वस्स वि गहणं कायव्यं, तत्थ वि आगमववएसुवलंभा। णोआगमादो दव्यबंधया तिविहा, जाणुअसरीर-भविय-तव्यदिरित्तबंधय भेदेण । जाणुगसरीर-भवियदव्वबंधया सुगमा ! तव्यदिरित्तदव्यबंधया दुविहा-कम्मबंधया णोकम्मबंधया चेदि । तत्थ जे णोकम्मबंधया ते तिविहा-सचित्तणोकम्मदव्यबंधया अचित्तणोकम्मदव्वबंधया मिस्सणोकम्मदव्वबंधया चेदि । तत्थ सचित्तणोकम्मदव्वबंधया जहा हत्थीणं बंधया, अस्साणं बंधया इच्चेवमादि । अचित्तणोकम्मदनबंधया जहा कट्ठाणं बंधया, सुप्पाणं बंधया कडयाणं बंधया, इच्चेवमादि । मिस्सणोकम्मदव्वबंधया जहा साहरणाणं' हत्थीणं बंधया इच्चेवमादि । जो द्रव्यबन्धक हैं वे आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारके हैं। बन्धकप्राभूतके जानकार किन्तु (विवक्षित समय पर ) उसमें उपयोग न रखनेवाले आगमद्रव्यबन्धक हैं। शंका-जो आगमके उपयोगसे रहित है उस जीव द्रव्यको 'आगम' कैसे कहा जा स समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, आगमके अभाव होने पर भी आगमके संस्कार सहित एवं पूर्वकालमें आगम संज्ञाको प्राप्त जीव द्रव्यको आगम कहना पाया जाता है । इसी प्रकार जिस जीवका आगम-संस्कार भ्रष्ट हो गया है उसका भी ग्रहण कर लेना चाहिये, क्योंकि, उसके भी आगम संज्ञा पाई जाती हैं। शायकशरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे नोआगमद्रव्यवन्धक तीन प्रकारके हैं। तद्व्यतिरिक्त द्रव्यवन्धक दो प्रकारके हैं - कर्मवन्धक और नोकर्मबन्धक । उनमें जो नोकर्मबन्धक हैं वे तीन प्रकारके हैं- सचित्तनोकर्मद्रव्यबन्धक, अचित्तनोकर्मद्रव्यबन्धक और मिश्रनोकर्मद्रव्यबन्धक । उनमें सचित्तनोकर्मद्रव्यबन्धक, जैसे- हाथी बांधनेवाले, घोड़े बांधनेवाले इत्यादि । अचित्तनोकर्मद्रव्यबन्धक, जैसे- लकड़ी बांधने- . वाले, सूपा बांधनेवाले, कट ( चटाई ) बांधनेवाले, इत्यादि । मिश्रनोकर्मद्रव्यबन्धक, जैसे- आभरणों सहित हाथियोंके बांधनेवाले, इत्यादि । १ प्रतिषु — आगमभावे ' इति पाठः । २ प्रतिषु । किद्दयाणं ' मप्रतौ ' किदयाणं ' इति पाठः । ३ भ-कात्योः ' साहारणाणं ' हति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy