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२, ६, ६५. ]
खेत्ताणुगमे जोगमगणा
[ ३४५
वेयण-कसाय-वेउब्विय-विहारख दिसत्थाण- तेजाहारखेत्ताणि अपुधभूदत्तादो तत्थेव लीणाणि दाणि एत्थ खुदाबंधे ण परिग्गहिदाणि । तदो मारणंतियमेकं चैव केवलिसमुग्धा देण सहिदं एत्थ समुग्धादणिद्देसेण घेप्पदि । सो च समुग्धादो एत्थ णत्थि तेणेसो ण दोसो त्ति । अधवा वेयण-कसाय- वेउब्विय-तेजाहाराणं पि एत्थ खुद्द बंधे अस्थि समुग्धाद
सो, किंतु ण ते पहाणं, मारणंतियखेत्तादो तेसिमहियखेत्ताभावादो । तदो पहाणं मारणंतियपदं जत्थ अस्थि, तत्थ समुग्धादो वि अस्थि । जत्थ तं णत्थि, ण तत्थ समुग्धादोति वच्चदि । तदो दोहि पयारेहि ' समुग्धादो णत्थि ' त्तिण विरुज्झदे |
आहार कायजोगी वेव्वियकायजोगिभंगो ॥ ६५ ॥
एसो व्यणिसो | पज्जवट्ठियणयं पटुच्च भण्णमाणे अत्थि तदो विसेसो | तं जहा - सत्थाण-विहारवदिसत्थाणपरिणदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे । मारणंतियसमुग्वादगदा चदुन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे,
कथन की अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागसे वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात, विद्दारवत्स्वस्थान, तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घातके क्षेत्र अभिन्न होने से उसीमें लीन हैं, अतएव ये यहां 'क्षुद्रकबन्ध' में नहीं ग्रहण किये गये हैं । इसी कारण केवलिसमुद्घात सहित एक मारणान्तिकसमुद्घात ही यहां समुद्घातनिर्देशसे ग्रहण किया जाता है । और वह समुद्घात यहां है नहीं, इसलिये यह कोई दोष नहीं है । अथवा वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात, तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घातको भी यहां 'क्षुद्रकबन्ध' में समुद्घातसंज्ञा प्राप्त है, किन्तु वे प्रधान नहीं है, क्योंकि, मारणान्तिक क्षेत्रकी अपेक्षा उनके अधिक क्षेत्रका अभाव है । अतएव जहां प्रधान मारणान्तिक पद है वहां समुद्घात भी है, किन्तु जहां वह नहीं है वहां समुद्घात भी नहीं है, ऐसा कहा जाता है। इस कारण दोनों प्रकारोंसे समुद्घात नहीं है' यह वचन विरोधको प्राप्त नहीं होता |
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आहारककाययोगियोंके क्षेत्रका निरूपण वैक्रियिककाययोगियोंके क्षेत्रके समान
है ॥ ६५ ॥
यह द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा निर्देश है। पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा निरूपण करने पर वैक्रियिककाययोगियोंके क्षेत्रसे यहां विशेषता है । वह इस प्रकार है- स्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान क्षेत्र से परिणत आहारककाययोगी जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त उक्त
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