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________________ ३४४ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ६, ६२. वेउब्धियकायजोगेण उववादस्स विरोहादो। वेउव्वियमिस्सकायजोगी सत्थाणेण केवडिखेत्ते ? ॥ ६२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ६३॥ एदस्स अत्थो- तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे। कुदो ? देवरासिस्स संखेज्जदिभागमेत्तवेउवियमिस्स कायजोगिदव्वुवलंभादो। समुग्घाद-उववादा णत्थि ॥ ६४ ॥ वेउब्धियमिस्सेण सह एदेसिं विरोहादो । होद मारणंतिय-उववादेहि सह विरोहो, ण वेयण-कसायसमुग्यादेहि । तम्हा वेउव्वियमिस्सम्मि समुग्धादो णत्थि त्ति ण घडदे ? एत्थ परिहारो वुच्चदे- सत्थाणखेत्तादो वाचयदुवारेण लोगस्स असंखेज्जदिभागेण क्योंकि, वैक्रियिककाययोगके साथ उपपाद पदका विरोध है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी स्वस्थानकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ६२ ॥ यह सूत्र सुगम है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६३ ॥ __इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थानसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे, और तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं, क्योंकि, देवराशिके संख्यातवें भागमात्र वैक्रियिकमिश्रकाययोगी द्रव्य पाया जाता है। समुद्घात व उपपाद पद नहीं हैं ।। ६४ ॥ क्योंकि, वैक्रियिकमिश्रकाययोगके साथ इनका विरोध है । शंका-वैक्रियिकमिश्रकाययोगका मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंके साथ भले ही विरोध हो, किन्तु वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घातके साथ कोई विरोध नहीं है । अत एव 'वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें समुद्घात नहीं है' य घटित नहीं होता? समाधान - उक्त शंकाका यहां परिहार कहा जाता है- स्वस्थान क्षेत्रसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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