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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो लोगस्स संखेज्जदिभागे ॥ ४१ ॥ एदं सामासियसुत्तं, तेणेदस्स अत्थो बुच्चदे | तं जहा- तिन्हं लोगाणं संखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति । कुदो ? समचउरस्सलोगणालि पंच रज्जुआयदमावूरिय तेसिं सव्वकालमवद्वाणादो । ३३६ ] समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते, सव्वलोगे ? ॥ ४२ ॥ वेयण-कसायसमुग्धादे तिन्हं लोगाणं संखेज्जदिभागे, पर- तिरियलोगेर्हितो असंखेज्जगुणे । वेउच्चियसमुग्धादेण चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे । माणुसखेत्तादो ण वदे | मारणंतिय-उववादेहि सव्वलोगे, असंखेज्जलोगपरिमाणत्तादो । बादरवाउपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ४३ ॥ सुगममेदं । [ २, ६, ४१. बादर वायुकायिक और उनके अपर्याप्त जीव स्वस्थानसे लोकके संख्यातवें भाग में रहते हैं ॥ ४१ ॥ यह सूत्र देशामर्शक है, इसलिये इसका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार हैउक्त जीव स्वस्थानसे तीन लोकोंके संख्यातवें भागवें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, समचतुष्कोण पांच राजु आयत लोकनालीको व्याप्त करके उनका सर्व कालमें अवस्थान है । उक्त जीव समुद्घात व उपपाद से कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सर्व लोकमें रहते हैं ॥। ४२ ॥ वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घातकी अपेक्षा उक्त जीव तीन लोकोंके संख्यातवें भागवें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा उक्त जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें रहते हैं । मानुषक्षेत्रकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं, यह ज्ञात नहीं हैं । मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पद से सर्व लोक में रहते हैं, क्योंकि वे असंख्यात लोकप्रमाण हैं । बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद से कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ४३ ॥ यह सूत्र सुगम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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