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२, ६, ४०.] खेत्ताणुगमे पुढविकाइयादिखेत्तपरूवणं
[ ३३५ णवरि बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरा पञ्जत्ता सत्थाण-वेयण-कसायपदेसु तिरियलोगस्स संखेनदिभागे। कधं ? बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरणिव्वत्तिपजत्तयस्स जहणिया
ओगाहणा घणंगुलस्स असंखेजदिभागो, घणंगुलस्स संखेजदिभागमेत्तबीइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए असंखेज्जगुणत्तण्णहाणुववत्तीदो। जदि पत्तेयसरीरपज्जत्ताणमोगाहणभागहारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो चेव होज्ज तो वि पदरंगुलभागहारादो घणंगुल भागहारो संखेज्जगुणो त्ति तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तं ण विरुज्झदे । एवं बादरतेउकाइयपज्जत्ता । णवरि सत्थाण-वेयण-कसायएहिं पंचण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, मारणंतिय-उववादेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे त्ति वत्तव्यं । वेउव्वियपदस्स सत्थाणभंगो।
बादरवाउकाइया तस्सेव अपज्जता सत्थाणेण केवडिखेत्ते ? ॥४०॥
सुगम ।
और बादर निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंका क्षेत्र जानना चाहिये । विशेष इतना है कि बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव स्वस्थान, वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंमें तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं । इसका कारण यह है कि बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना घनांगुलके असंख्यातवें भागमात्र है, क्योंकि, अन्यथा द्वीन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहनासे वह असंख्यातगुणी नहीं बन सकती । यदि प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंकी अवगाहनाका भागहार पल्योपमका असंख्यातवां भाग ही हो तो भी प्रतरांगुलके भागहारसे घनांगुलका भागहार संख्यातगुणा है, अतएव तिर्यग्लोकका असंख्यातवां भाग विरुद्ध नहीं है। इसी प्रकार बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवोंका भी क्षेत्र जानना चाहिये। विशेष इतना है कि स्वस्थान, वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा पांचों लोकोंके असंख्यातवें भागमें तथा मारणान्तिक व उपपाद पदोंकी अपेक्षा चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये । वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण स्वस्थानके समान समझना चाहिये। ___बादर वायुकायिक और उनके ही अपर्याप्त जीव स्वस्थानकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ।। ४० ॥
यह सूत्र सुगम है।
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